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Monday 26 August 2013

How to worship Krishna Janmashtami

कृष्ण जन्माष्टमी पर कैसे करें पूजन

सभी दृष्टि से कृष्ण पूर्णावतार हैं। आध्यात्मिक, नैतिक या दूसरी किसी भी दृष्टि से देखेंगे तो मालूम होगा कि कृष्ण जैसा समाज उद्धारक दूसरा कोई पैदा हुआ ही नहीं है। 

जब-जब भी धर्म का पतन हुआ है और धरती पर असुरों के अत्याचार बढ़े हैं तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापन की है। 

भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्यरात्रि कअत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया था ऐसे भगवान कृष्‍ण के व्रत-पूजन से संबंधित जानकारी प्रस्तुत है:- 

कैसे करें व्रत-पूजन : 

- उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोज करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें


श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
- उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं। पश्चात सूर्य, सोम, म, काल,संधि, भूत, पवन,दिक्‌पति, भूमि, आकाश,खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मु बैठें

- इसके बाद जल, ल,कुश और गंध लेक संकल्प करें :
ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष् सिद्धय
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमह करिष्ये

अब मध्याह्न के समय काले तिलों क जल से स्नान कर देवकीजी के लिए 'सूतिकागृह' नियत करें

- तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें

- मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण क स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भा हो

- इसके बाद विधि-विधान से पूज करें

- पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः निर्दिष्ट करन चाहिए

फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्प करें :-
'प्रणम देव जननी त्वया जातस्तु वामनः
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नम नमः
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं मे गृहाणेमं नमोऽस्तुते।'

अंत में रतजगा रखकर भजन-कीर्त करें। साथ ही प्रसाद वितरण करके कृष्‍ण जन्माष्टमी पर्व मनाएं

Krishna Janmashtami

श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी व श्रीवसुदेव के पुत्र रूप में हुआ था. कंस ने अपनी मृत्यु के भय से अपनी बहन देवकी और वसुदेवको कारागार में कैद किया हुआ था. कृष्ण जी जन्म के समय घनघोर वर्षा हो रही थी. चारो तरफ़ घना अंधकार छाया हुआ था. भगवान के निर्देशानुसार कुष्ण जी को रात में ही मथुरा के कारागार से गोकुल में नंद बाबा के घर ले जाया गया.

नन्द जी की पत्नी यशोदा को एक कन्या हुई थी. वासुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को अपने साथ ले गए. कंस ने उस कन्या को वासुदेव और देवकी की संतान समझ पटककर मार डालना चाहा लेकिन वह इस कार्य में असफल ही रहा. दैवयोग से वह कन्या जीवित बच गई. इसके बाद श्रीकृष्ण का लालन–पालन यशोदा व नन्द ने किया. जब श्रीकृष्ण जी बड़े हुए तो उन्होंने कंस का वध कर अपने माता-पिता को उसकी कैद से मुक्त कराया.

जन्माष्टमी में हांडी फोड़
श्रीकृष्ण जी का जन्म मात्र एक पूजा अर्चना का विषय नहीं बल्कि एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है. इस उत्सव में भगवान के श्रीविग्रह पर कपूर, हल्दी, दही, घी, तेल, केसर तथा जल आदि चढ़ाने के बाद लोग बडे हर्षोल्लास के साथ इन वस्तुओं का परस्पर विलेपन और सेवन करते हैं. कई स्थानों पर हांडी में दूध-दही भरकर, उसे काफी ऊंचाई पर टांगा जाता है. युवकों की टोलियां उसे फोडकर इनाम लूटने की होड़ में बहुत बढ-चढकर इस उत्सव में भाग लेती हैं. वस्तुत: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत केवल उपवास का दिवस नहीं, बल्कि यह दिन महोत्सव के साथ जुड़कर व्रतोत्सव बन जाता है.