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Tuesday 27 August 2013

सोलह कलाओं का अवतार है श्रीकृष्ण

भगवान श्रीकृष्ण को सोलह कलाओं का अवतार माना जाता है। सच में कृष्ण ने समाज के छोटे से छोटे व्यक्ति का सम्मान बढा़या, जो जिस भाव से सहायता की कामना लेकर कृष्ण के पास आया, उन्होंने उसी रूप में उसकी इच्छा पूरी की।

अपने कार्यों से उन्होंने लोगों का इतना विश्वास जीत लिया कि आज भी लोग उन्हें 'भगवान श्रीकृष्ण' के रूप में ही मानते और पूजते हैं।

कृष्ण पूर्णतया निर्विकारी हैं। तभी तो उनके अंगों के साथ भी लोग 'कमल' शब्द जोड़ते हैं, जैसे- कमलनयन, कमलमुख, करकमल आदि। उनका स्वरूप चैतन्य है। कृष्ण ने तो द्रोपदी का चीर बढ़ाकर उसे अपमानित होने से बचाया था।

श्रीकृष्‍ण जन्माष्टमी का दिन बड़ा ही पवित्र है। जैनियों के भावी तीर्थंकर और वैदिक परंपरा के नारायण श्रीकृष्ण के अवतरण का दिन है। कृष्ण ने सारी दुनिया को कर्मयोग का पाठ पढ़ाया।

उन्होंने प्राणीमात्र को यह संदेश दिया कि केवल कर्म करना आदमी का अधिकार है। फल की इच्छा रखना उसका अधिकार नहीं। इंसान सुख और दुख दोनों में भगवान का स्मरण करता है।

श्रीकृष्ण का जीवन भी उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। उनके जीवन को हम तीन भागों में विभक्त करें तो वे जेल में पैदा हुए, महल में जिए और जंगल से विदा हुए। जेल में पैदा होना बुरी बात नहीं है, जेल में जीना और मरना अपराध हुआ करता है। आदमी जन्म से नहीं कर्म से महान बनता है।

भगवान श्रीकृष्ण, मर्यादा पुरुषोत्तम राम और भगवान महावीर आदि महापुरुषों ने हमें जीवन जीने की सीख दी है। राम, कृष्ण और महावीर का जीवन अलग-अलग मर्यादाओं और संदेशों पर आधारित है। राम ने जीवन भर मर्यादाएं नहीं तोड़ीं वे देव बनकर जिए।

श्रीकृष्ण वाकपुटता में जीवन जीते रहे। मर्यादाओं से नीरस हुए जीवन को कृष्ण ने रस और आनंद से भर दिया, लेकिन महावीर ने परम विश्राम और समाधि का सूत्र दिया। उन्होंने मौन साधना सिखाई।

मित्रता सीखनी हो तो कृष्ण से सीखो वे सबको अपने समान चाहते थे। उनकी दृष्टि में अमीर-गरीब का कोई भेद नहीं था। अत: हमें भी कृष्ण की इसी सीख को अपने जीवन में अपनाना चाहिए।