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Monday 26 August 2013

भगवान कृष्ण की नगरी | City of Lord Krishn

 श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था। पिता का नाम वासुदेव और माता का नाम देवकी। दोनों को ही कंस ने कारागार में डाल दिया था। उस काल में मथुरा का राजा कंस था, जो श्रीकृष्ण का मामा था। कंस को आकाशवाणी द्वारा पता चला कि उसकी मृत्यु उसकी ही बहन देवकी की आठवीं संतान के हाथों होगी। इसी डर के चलते कंस ने अपनी बहन और जीजा को आजीवन कारागार में डाल दिया था।

मथुरा यमुना नदी के तट पर बसा एक सुंदर शहर है। मथुरा जिला उत्तरप्रदेश की पश्चिमी सीमा पर स्थित है। इसके पूर्व में जिला एटा, उत्तर में जिला अलीगढ़, दक्षिण-पूर्व में जिला आगरा, दक्षिण-पश्चिम में राजस्थान एवं पश्चिम-उत्तर में हरियाणा राज्य स्थित हैं। मथुरा, आगरा मण्डल का उत्तर-पश्चिमी जिला है। मथुरा जिले में चार तहसीलें हैं- मांट, छाता, महावन और मथुरा तथा 10 विकास खण्ड हैं- नन्दगांव, छाता, चौमुहां, गोवर्धन, मथुरा, फरह, नौहझील, मांट, राया और बल्देव हैं। 

मथुरा भारत का प्राचीन नगर है। यहां पर से 500 ईसा पूर्व के प्राचीन अवशेष मिले हैं, जिससे इसकी प्राचीनता सिद्ध होती है। उस काल में शूरसेन देश की यह राजधानी हुआ करती थी। पौराणिक साहित्य में मथुरा को अनेक नामों से संबोधित किया गया है जैसे- शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा आदि। उग्रसेन और कंस मथुरा के शासक थे जिस पर अंधकों के उत्तराधिकारी राज्य करते थे।


मथुरा के बारह जंगल : वराह पुराण एवं नारदीय पुराण ने मथुरा के पास के 12 वनों की चर्चा की है- 1. मधुवन, 2. तालवन, 3. कुमुदवन, 3. काम्यवन, 5. बहुलावन, 6. भद्रवन, 7. खदिरवन, 8. महावन (गोकुल), 9. लौहजंघवन, 10. बिल्व, 11. भांडीरवन एवं 12. वृन्दावन। इसके अलावा 24 अन्य उपवन भी थे। आज यह सारे स्थान छोटे-छोटे गांव और कस्बों में बदल गए हैं।

जन्मभूमि का इतिहास : जहां भगवान कृष्ण का जन्म हुआ पहले वह कारागार हुआ करता था। यहां पहला मंदिर 80-57 ईसा पूर्व बनाया गया था। इस संबंध में महाक्षत्रप सौदास के समय के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि किसी 'वसु' नामक व्यक्ति ने यह मंदिर बनाया था। इसके बहुत काल के बाद दूसरा मंदिर सन् 800 में विक्रमादित्य के काल में बनवाया गया था, जबकि बौद्ध और जैन धर्म उन्नति कर रहे थे। 

इस भव्य मंदिर को सन् 1017-18 ई. में महमूद गजनवी ने तोड़ दिया था। बाद में इसे महाराजा विजयपाल देव के शासन में सन् 1150 ई. में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने बनवाया। यह मंदिर पहले की अपेक्षा और भी विशाल था, जिसे 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा डाला।


ओरछा के शासक राजा वीरसिंह जू देव बुन्देला ने पुन: इस खंडहर पड़े स्थान पर एक भव्य और पहले की अपेक्षा विशाल मंदिर बनवाया। इसके संबंध में कहा जाता है कि यह इतना ऊंचा और विशाल था कि यह आगरा से दिखाई देता था। लेकिन इसे भी मुस्लिम शासकों ने सन् 1669 ईस्वी में नष्ट कर इसकी भवन सामग्री से जन्मभूमि के आधे हिस्से पर एक भव्य ईदगाह बनवा दी गई, जो कि आज भी विद्यमान है। 

इस ईदगाह के पीछे ही महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी की प्रेरणा से पुन: एक मंदिर स्थापित किया गया है, लेकिन अब यह विवादित क्षेत्र बन चुका है क्योंकि जन्मभूमि के आधे हिस्से पर ईदगाह है और आधे पर मंदिर।

मथुरा के अन्य मंदिर : मथुरा में जन्मभूमि के बाद देखने के लिए और भी दर्शनीय स्थल है :- जैसे विश्राम घाट की ओर जाने वाले रास्ते पर द्वारकाधीश का प्राचीन मंदिर, विश्राम घाट, पागल बाबा का मंदिर, इस्कॉन मंदिर, यमुना नदी के अन्य घाट, कंस का किला, योग माया का स्थान, बलदाऊजी का मंदिर, भक्त ध्रुव की तपोस्थली, रमण रेती आदि।


मथुरा परिक्रमा : मथुरा परिक्रमा में होते हैं कृष्ण से जुड़े प्रत्येक स्थलों के दर्शन। माना जाता है कि यह परिक्रमा चौरासी कोस की है जिसके मार्ग में अलीगढ़, भरतपुर, गुड़गांव, फरीदाबाद की सीमा लगती है, लेकिन इसका अस्सी फीसदी हिस्सा मथुरा जिले में ही है। मथुरा से चलकर यात्रा सबसे पहले भक्त ध्रुव की तपोस्थली से शुरू होती है परिक्रमा इसके बाद... 
1. मधुवन
2. तालवन 
3. कुमुदवन 
4. शांतनु कुण्ड 
5. सतोहा 
6. बहुलावन 
7. राधा-कृष्ण कुण्ड 
8. गोवर्धन 
9. काम्यक वन
10. संच्दर सरोवर
11. जतीपुरा 
12. डीग का लक्ष्मण मंदिर
13. साक्षी गोपाल मंदिर 
14. जल महल 
15. कमोद वन 
16. चरन पहाड़ी कुण्ड 
17. काम्यवन 
18. बरसाना 
19. नंदगांव 
20. जावट 
21. कोकिलावन 
22. कोसी 
23. शेरगढ 
24. चीर घाट 
25. नौहझील 
26. श्री भद्रवन
27. भांडीरवन
28. बेलवन
29. राया वन
30. गोपाल कुण्ड 
31. कबीर कुण्ड
32. भोयी कुण्ड
33. ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर 
34. दाऊजी
35. महावन
36. ब्रह्मांड घाट
37. चिंताहरण महादेव
38. गोकुल 
39. लोहवन
40. वृन्दावन

इस यात्रा मार्ग में कई और पौराणिक स्थलों के अलावा 12 वन, 24 उपवन, चार कुंज, चार निकुंज, चार वनखंडी, चार ओखर, चार पोखर, 365 कुण्ड, चार सरोवर, दस कूप, चार बावरी। (क्रमश:)


आज से लगभग 5 हजार 125 वर्ष पूर्व उत्तरप्रदेश के मथुरा में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। गोकुल मथुरा से 15 किलोमीटर दूर है। यमुना के इस पार मथुरा और उस पार गोकुल है। मथुरा के बाद गोकुल की यात्रा करना चाहिए। दुनिया के सबसे नटखट बालक ने वहां 11 साल 1 माह और 22 दिन गुजारे थे।

महावन और गोकुल एक ही है। फिलहाल 8 हजार की आबादी वाला यह गांव उस काल में कैसे रहा होगा, इसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। कहा जाता है कि उस काल में इसका नाम गोकुल नहीं था। गो, गोप, गोपी आदि का समूह वास करने के कारण महावन को ही गोकुल कहा जाने लगा।

वर्तमान की गोकुल को औरंगजेब के समय श्रीवल्लभाचार्य के पुत्र श्रीविट्ठलनाथ ने बसाया था। गोकुल से आगे 2 किमी दूर महावन है। लोग इसे पुरानी गोकुल कहते हैं। यहां चौरासी खम्भों का मंदिर, नंदेश्वर महादेव, मथुरा नाथ, द्वारिका नाथ आदि मंदिर हैं।


मथुरा में कृष्ण के जन्म के बाद कंस के सभी सैनिकों को नींद आ गई थी और वासुदेव की बेड़ियां किसी चमत्कार से खुल गई थी। तब वासुदेवजी भगवान कृष्ण को गोकुल में नंदराय के यहां आधी रात को छोड़ आए थे। नंद के घर लाला का जन्म हुआ है, ऐसी खबर धीरे-धीरे गांव में फैल गई। यह सुनकर सभी गोकुलवासी खुशियां मनाने लगे। कृष्ण और बलराम का पालन-पोषण यहीं हुआ।

बलराम और कृष्ण दोनों अपनी लीलाओं से सभी का मन मोह लेते थे। घुटनों के बल चलते हुए दोनों भाई को देखना गोकुल वासियों को सुख देता था। गोपियां नटखट बाल गोपाल को छाछ और माखन का लालच देकर नचाती थीं। कृष्ण ने गोकुल में रहते हुए पूतना, शकटासुर, तृणावर्त आदि असुरों का वध किया।

गोकुल तो गोपाल की बाल लीलाओं, नटखट अदाओं का स्थान है। गोकुल में प्रवेश करते ही हमें वह झाड़ दिखाई देता हैं, जहां बाल गोपाल बैठकर बंसी बजाते थे और पास ही के कुंड में मां यशोदा और गोकुल गांव की अन्य महिलाएं कपड़े धोती थी और नहाती भी थी। बाल गोपाल बांसुरी की धुन से सभी को मंत्रमुग्ध कर देते थे।

बंसीवट के पास से ही एक रास्ता सीधे नंद के भवन को जाता है। नंद के भवन तक जाते समय बीच में गौशाला और रासचौक पड़ता है। रासचौक जहां गांव के लोग लोक उत्सव या त्योहर पर मिलकर रास रचाते थे अर्थात नाचते, गाते और बजाते थे। पत्थरों से बने एक बड़े से द्वार में घुसकर हम रासचौक जाते हैं वहीं से अंदर रासचौक की एक गली के मुहाने से हमें नंद के भवन की दीवार दिखाई देती हैं। जहां दीवार दिखाई देती है वहीं से गली मुड़ जाती है जो हमें सीधे नंद के भवन के दरवाजे पर लाकर छोड़ती है।

भवन के अंदर संगमरमर के फर्श पर संकोचवश ही व्यक्ति पैर रख पाता है क्योंकि हर पत्थर पर उन लोगों के नाम खुदें हैं जिन्होंने नंद के भवन की देख-रेख और बाल गोपाल को प्रतिदिन लगने वाले माखन-मिश्री और लड्डू के भोग के लिए दान दिया है। कुछ और दरवाजों को पार करने के बाद आता है वह स्थान, जहां माता यशोदा भगवान कृष्ण को झूले में झूला झूलाती थी। यहां जहां भगवान झूले में सोते रहते थे। 

भवन के भीतर दूसरी ओर के दरवाजे के पास ही तलघर में उतरने के बाद है वह स्थान, जहां भगवान कृष्ण ने पूतना का वध किया था। वहीं से पुन: ऊपर चढ़ने के बाद आगे एक गली है जो हमें गोकुल के बाजार की अन्य गलियों में लाकर छोड़ देती है। वहीं से एक गली में सीधे चलने के बाद हमें एक तरफ दिखाई देता है, रासचौक का द्वार और दूसरी तरफ वह पेड़... जहां बाल गोपाल बैठकर बंसी बजाया करते थे।

यहां के घाट और उसके पास अन्य मनोरम स्थल है जैसे- गोविंद घाट, गोकुलनाथजी का बाग, बाजनटीला, सिंहपौड़ी, यशोदा घाट, रमणरेती आदि। (क्रमश:)